डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे…श्री राम”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 154 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे… श्री राम ☆
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सदियों से सब कर रहे, बने राम दरबार।
पावन भूमि अयोध्या, जय जय सीता राम।।
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देख लिया हर रूप में, तुम हो मेरे राम।
वचन निभाया आपने, मर्यादा के नाम।।
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वंदन है प्रभु आपको, विनती है प्रभु राम।
अपनी शरण में रख लो, हो जब तक ना शाम।।
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बस केवल जपते रहो ,राम राम श्री राम.
काम सारे हो रहे, लेते ही प्रभु नाम।।
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महिमा केवल आपकी, राम राम प्रभु राम।
पूरे अब होने लगे, बनते बिगड़े काम।।
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वातायन में गूंजती , प्यारी सी आवाज।
सुमिरन है श्री राम का, बजते सारे साज।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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