श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 20☆
☆ गिद्ध को उड़ाने की कोशिश में ☆
कहानियों के पात्र प्राय: हमारे इर्द-गिर्द होते हैं, हमारे परिवेश में होते हैं। पात्र की पड़ताल कीजिए तो संबंधित साहित्यकार बताएगा/गी कि यह पात्र उसके मोहल्ले में रहता था। फलां पात्र के बारे में एक मित्र ने बताया था, अर्थात कहानियों के पात्र वास्तविक जीवन से कागज़ पर उतरते हैं। पात्र, पाठक की संवेदना के साथ जुड़ जाता है। पात्र के जीवन की घटनाओं पर आह और वाह, पाठक की अभिव्यक्ति का माध्यम बनते हैं।
विसंगति है कि कहानी के पात्र के साथ संवेदना रखने वाला अपितु संवेदना जीने वाला वास्तविक जीवन में पात्रों की दुर्दशा में यह कहकर दख़लअंदाज़ी करने से मना कर देता है कि यह सम्बंधित पात्र का निजी मामला है।
इस संदर्भ में प्रतिभाशाली पर दुर्भाग्यवान फोटोग्राफर केविन कार्टर का याद आना स्वाभाविक है। केविन 1993 में सूडान में भुखमरी की ‘स्टोरी'(!) कवर करने गए थे। भुखमरी से मरणासन्न एक बच्ची के पीछे बैठकर उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे गिद्ध की फोटो उन्होंने खींची थी। (विचलित करने वाली यह तस्वीर मैं साझा नहीं कर रहा हूँ।) इस तस्वीर ने दुनिया का ध्यान सूडान की ओर खींचा। केविन को इस फोटो के लिए पुलित्जर सम्मान भी मिला। बाद में एक टीवी शो के दौरान जब केविन इस गिद्ध के बारे में बता रहे थे तो एक दर्शक की टिप्पणी ने उन्हें भीतर तक हिला कर रख दिया। उस दर्शक ने कहा था, ‘ उस दिन वहाँ दो गिद्ध थे। दूसरे के हाथ में कैमरा था।’ माना जाता है कि बाद में ग्लानिवश केविन अवसाद में चले गए। एक वर्ष बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। यद्यपि अपने आत्महत्या से पूर्व लिखे पत्र में केविन ने इस बात का उल्लेख किया था कि इस फोटो के कारण ही सूडान को संयुक्त राष्ट्रसंघ से बड़े स्तर पर सहायता मिली।
इस दुर्भाग्यजनक कहानी के विविध पहलुओं पर चर्चा हो सकती है। सहमति, असहमति हो सकती है पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि साहित्यकार, पत्रकार, कुछ भी होने से पहले हम मनुष्य हैं। मनुष्यता बची रहेगी तभी मनुष्य से जुड़े सरोकार भी बचे रहेंगे। साथ ही कालातीत सत्य का एक पहलू यह भी है कि हम सबके भीतर एक गिद्ध है। हो सकता है कि हम उस गिद्ध को समाप्त न कर सकें पर दूर भगाने या उड़ाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं न!
© संजय भारद्वाज, पुणे
मोबाइल– 9890122603
(विनम्र सूचना- ‘संजय उवाच’ के व्याख्यानों के लिए 9890122603 पर सम्पर्क किया जा सकता है।)