श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य # 154 ☆

☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मिल बैठें सब प्रेम से, हों भी भिन्न विचार।

कहें, सुनें, सम्मान दें, बढ़े  परस्पर  प्यार।।

 

बीजगणित के सूत्र सम, जटिल जगत संबंध।

उत्तर   संशय  ग्रस्त  है,    प्रश्न सभी  निर्बन्ध।।

 

छलनी छाने  जो मिले,  शब्द तौल कर बोल।

वशीकरण के मंत्र सम, मधुर वचन अनमोल।।

 

धैर्य  धर्म का मूल  है, सच  इसके  सोपान।

पकड़ मूल सच थाम लें, वे सद्ग्रही महान।।

 

सच को सच समझें तभी, साहस का संचार।

तन-मन नित हर्षित रहे, उपजे निश्छल प्यार।।

 

भीतर  बाहर एक से,  हैं जिनके व्यवहार।

जीवन में उनके सदा, बहती सुखद बयार।।

 

जब होता बेचैन मन, सब कुछ लगे उदास।

ऐसे  में  परिहास  भी,  लगता है उपहास।।

 

रोज  रात  मरते  रहे,  प्रातः  जीवन दान।

फिर भी हैं भूले हुए, खुद की ही पहचान।।

 

बंजारों-सा  दिन  ढला, मेहमानों-सी  रात।

रैन-दिवस में कब कहाँ, काल करेगा घात।।

 

जीवन पथ में  है कई,  प्रतिगामी अवरोध।

संकल्पित जो लक्ष्य है, रहे सिर्फ यह बोध।।

 

दुख के दरवाजे  घुसे,  आशाओं की  बेल।

लिपटे हरित बबूल से, दूध-छाँछ का खेल।।

 

सपनों के बाजार में, बिकें नहीं बिन मोल।

राह बनाएँ  स्वयं की, अपनी आँखें खोल।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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