प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गजल – “समय…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #106 ☆  गजल – “समय…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जग में सबको हँसाता है औ’ रूलाता है समय

सुख औ’ दुख को बताता है औ’ मिटाता है समय।

 

चितेरा एक है यही संसार के श्रृंगार का

नई खबरों का सतत संवाददाता है समय।

 

बदलती रहती है दुनियाँ समय के संयोग से

आशा की पैंगों पै सबकों नित झुलाता है समय।

 

भावनामय कामना को दिखाता नव रास्ता

साध्य से हर एक साधक को मिलाता है समय।

 

शक्तिशाली है बड़ा रचता नया इतिहास नित

किन्तु जाकर फिर कभी वापस न आता है समय।

 

सिखाता संसार को सब समय का आदर करें

सोने वालों को हमेशा छोड़ जाता है समय।

 

है अनादि अनन्त फिर भी है बहुत सीमित सदा

जो इसे है पूजते उनको बनाता है समय।

 

हर जगह श्रम करने वालों को है इसका वायदा

एक बार ’विदग्ध’ उसको यश दिलाता है समय।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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