श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 146 ☆

☆ ‌आलेख – प्रायश्चित ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

आप ने आलेखों की श्रृंखला में पश्चाताप शीर्षक से आलेख पढ़ा था, जिसकी विषयवस्तु थी  कि किस प्रकार  मानव यथार्थ का ज्ञान होने पर अपनी गलतियों पर पश्चाताप करता है, और पश्चाताप की अग्नि में जल कर व्यक्ति के सारे अवगुण नष्ट हो जाते हैं। 

उसकी अंतरात्मा की गई गलतियों के लिए उसे हर पल कोसती रहती है आदमी का सुख चैन छिन जाता है, और वह अपनी आत्मा के धिक्कार को सह नहीं पाता । और इंसान प्रायश्चित करने के रास्ते पर चल पड़ता है अपने कर्मों का आत्म निरीक्षण करता है। इस प्रकार पश्चाताप जहां जहां गलतियों की स्वीकारोक्ति है, वहीं प्रायश्चित स्वीकार्यता का परिमार्जन अर्थात् सुधार है। इंसानी सोच बदल जाती है दशा और दिशा बदल जाती है। उसकी समझ बढ़ जाती है। उसके बाद इंसान फिर से गलतियां ना करने का दृढ़ संकल्प लेता है, तथा अपनी पूर्ववर्ती गलतियों का प्रायश्चित करने पर उतर आता है, और प्रायश्चित पूर्ण करने के लिए हर सजा भुगतने के लिए मानसिक रूप से खुद को तैयार कर लेता है।

या प्रकारांतर से ये कह लें कि प्रायश्चित  गलतियों को सुधारने के  अवसर का नाम है।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

दिनांक 23–10–22  समय-12-10-22

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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