सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “रौशनाई!”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 17 ☆
ये क्या हुआ, कहाँ बह चली ये गुलाबी पुरवाई?
क्या किसी भटके मुसाफिर को तेरी याद आई?
बहकी-बहकी सी लग रही है ये पीली चांदनी भी,
बादलों की परतों के पीछे छुप गयी है तनहाई!
क्या एक पल की रौशनी है, अंधेरा छोड़ जायेगी?
या फिर वो बज उठेगी जैसे हो कोई शहनाई?
डर सा लगता है दिल को सीली सी इन शामों में,
कहीं भँवरे सा डोलता हुआ वो उड़ न जाए हरजाई!
ज़ख्म और सह ना पायेगा यह सिसकता लम्हा,
जाना ही है तो चली जाए, पास न आये रौशनाई!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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