डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता ‘रिश्ते ’।
☆ कविता – रिश्ते — ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
रिश्तों को
हमने जो
परखना चाहा
खुद को
मंझधार में
खड़ा पाया |
दोस्तों को
जब हमने
परखना चाहा
आगे बढ़ा हाथ
सिमटता पाया |
दोस्ती का बढ़ाया हाथ,
समझ दोस्त अपना |
पैरों तले जमीन को,
खिसकते पाया |
©डॉ. ऋचा शर्मा
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अद्भुत् चिन्तन।कटु यथार्थ।