डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है मन से एक कविता “ये चेहरे सब दूध धुले हैं….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 22☆
☆ ये चेहरे सब दूध धुले हैं….☆
इन्हें कुर्सियों पर बैठाओ
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
ये नैतिकता के चारण हैं
कान लगाकर ध्यान लगाओ
कहे रात को दिन, तो दिन है
दिन को कहे रात, सो जाओ।
है बेदागी ये वैरागी
त्यागी, तपसी शहद घुले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
दिवस-रैन, बेचैन-व्यथित
नृपवंशज राजकुमार दुलारे
देशप्रेम, जन-जन के खातिर
भटक रहे दर-दर बेचारे।
कुनबों सहित समर्पित,अपने
अपनों के करतब भूले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
कोई भी हद पार करेंगे
बस यह आसन्दी है पाना
लक्ष्य एक,अवरोधक है जो
कैसे भी है उसे हराना।
दलदलीय क्रन्दनवन में
मिल,झूल रहे सावन झूले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
उधर कहे वे, मेरी सल्तनत
यहाँ, नहीं कोई आएगा
पूछ-परख की नहीं इजाजत
सही वही, जो मन भायेगा।
क्रय-विक्रय, सौदेबाजी
गठबंधन के बाजार खुले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
इधर सभी हैं आत्ममुग्ध
सत्ता के मद में, हैं बौराये
दर्प भरे से, भ्रमित उचारे
बिन सोचे जो मन में आये।
राष्ट्रप्रेम ज्यूँ निजी धरोहर
जतलाकर, मन में फूले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
अदल-बदल के खेल चल रहे
बेशर्मी के ओढ़ मुखौटे
कठपुतली से नाच रहे हैं
खूब चल रहे सिक्के खोटे।
इधर रहे बेभाव अन्तुले
उधर गए तो स्वर्ण तुले हैं
ये चेहरे सब दूध धुले हैं।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014