डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 159 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
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गघरी ली है हाथ में,थककर बैठी छाँव।
गहरी सोच में डूबती,पिया नहीं है गाँव।।
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राह प्रिय की देख रही,गुमसुम बैठी सोच।
कब आओगे सजन तुम,दिल में आई मोच।।
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मिलने प्रिय को आ गई,घर में नहीं है ठाँव।
कब आओगे प्रिये तुम,थमते नहीं है पाँव।।
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पानी भरकर बैठती,चेहरा है उदास।
दिल में उसके हो रही,बस प्रिय की है आस।।
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चिंता मन में हो रही,आ जाओ प्रिय पास।
दिल से दिल की दूरियां,जगती मन में खास।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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