आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 117 ☆ 

☆ भजन – प्रभु हैं तेरे पास में…१ ☆

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कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में…

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तन तो धोता रोज न करता, मन को क्यों तू साफ रे!

जो तेरा अपराधी है, उसको कर दे हँस माफ़ रे..

प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में, तम में और प्रकाश में.

कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में…

*

चित्र-गुप्त प्रभु सदा चित्त में, गुप्त झलक नित देख ले.

आँख मूँदकर कर्मों की गति, मन-दर्पण में लेख ले..

आया तो जाने से पहले, प्रभु को सुमिर प्रवास में.

कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में…

*

मंदिर-मस्जिद, काशी-काबा मिथ्या माया-जाल है.

वह घट-घट कण-कणवासी है, बीज फूल-फल डाल है..

हर्ष-दर्द उसका प्रसाद, कडुवाहट-मधुर मिठास में.

कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में…

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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