प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #110 ☆ ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
सच आज की दुनियॉं के अन्दाज निराले हैं
हैरान हो रहे है सब देखने वाले हैं।
धोखा, दगा, रिश्वत का यों बढ़ गया चलन है
देखों जहॉं भी दिखते बस घपले-घोटाले हैं।
पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा
धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं।
शोहरत औ’ दिखावों की यों होड़ लग गई है
नज़रों में सबकी, होटल, पब, सुरा के प्याले हैं।
महिलायें तंग ओछे कपड़े पहिन के खुश है
आँखें झुका लेते वे जो देखने वाले हैं।
शालीनता सदा से श्रृंगार थी नारी की
उसके नयी फैशन ने दीवाले निकाले हैं।
व्यवहार में बेइमानी का रंग चढ़ा ऐसा
रहे मन के साफ थोड़े, मन के अधिक काले हैं।
अच्छे-भलों का सहसा चलना बड़ा मुश्किल है
हर राह भीड़ बेढ़ब, बढ़े पॉंव में छाले हैं।
जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता
पर पुण्य पुराने हैं, जो सबको सम्हाले हैं।
आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है
कहीं आग की लपटें, कहीं खून के नाले है।
हर दिन ये सारी दुनियॉं हिचकोले खा रही है
पर सब ’विदग्ध’ डरकर ईश्वर के हवाले हैं।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈