आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 118 ☆ 

☆ भजन – प्रभु हैं तेरे पास में…२ ☆

*

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

निराकार काया में स्थित,

हो कायस्थ कहाते हैं.

रख नाना आकार दिखाते,

झलक तुरत छिप जाते हैं..

प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,

प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

कोई न अपना सभी पराये,

कोई न गैर सभी अपने हैं.

धूप-छाँव, जागरण-निद्रा,

दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..

पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,

कर मद-मोह-गर्व का भंजन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु,

पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.

कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का,

जो आये द्वारे तारे हैं..

नेह नर्मदा में कर मज्जन,

प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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