डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत –वशीकरण है तेरा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 116 – गीत – वशीकरण है तेरा…
वशीकरण है तेरा, शरणागत यह मन मेरा ।
लंबी गहरी मरुस्थली में भटक भटक भरमाया
जाने किसकी पुण्य प्रभाव से हरित भूमि को पाया
आनत हूं आश्चर्यचकित हूं, किसने दिया बसेरा।
वशीकरण है तेरा…
धूल धूसरिता रही जिंदगी एक रंग था काला।
मुझको कुछ भी पता नहीं था कैसा है उजियाला ।
दिव्य ज्योति अंबर से उतरी, नूतन दृश्य उकेरा।
वशीकरण है तेरा…
महक उठा है मन में मधुबन अद्भुत रास रचा है
वेणु गीत सा जीवन लगता या फिर वेद ऋचा है ।
संभव हुआ असंभव कैसे, निश्चय जादू तेरा ।
वशीकरण है तेरा…
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार अभिव्यक्ति