व्यंग्य – कुछ कम एप्पल खाओ भाई आदम और ईव !
उसने आदम को बनाया, उसके साथ के लिए सुन्दर सी ईव को बनाया। एप्पल का पेड़ लगाया और उसकी रक्षा का काम आदम को सौंप दिया। आदम को ताकीद भी कर दी कि इस वृक्ष के फल तुम मत खाना। दरअसल उसने एप्पल के फल गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए लगाए थे। और इसलिए भी कि बाद के समय में कटे हुए एप्पल को ब्रांड बनाते हुए मंहगा मोबाईल लांच किया जा सके। और शायद इसलिए कि चिकित्सा जगत को किंचित समझने वाले कथित साहित्यकार “एन एप्पल ए डे कीप्स द डाक्टर अवे “ टाइप की कहावतें गढ़ सकें, जो दूसरों को नसीहतें देने के काम आएं। किन्तु नोटोरियस ईव मनोहारी एप्पल खाने से खुद को रोक न सकी, इतना ही नहीं उसने आदम को भी एप्पल का स्वाद चखा दिया।
तब से अब तक हर ईव के सम्मुख हर आदम बेबस एप्पल खाये जा रहा है। कुछ सुसम्पन्न आदम एप्पल के साल दर साल बदलते मॉडल के आई फोन, नए नए स्लिम लेपटॉप, और कम्प्यूटर अपनी अपनी ईव को रिझाने के लिए ख़रीदे जा रहे हैं। बाकी के आदम और ईव मजे में चमकीली चिप्पी चिपके हुए विदेशी आयातित एप्पल खरीदकर खाये जा रहे हैं। जो रियल एप्पल नहीं खा पा रहे वे नीली फिल्मों से कल्पना के प्रतिबंधित वर्चुएल एप्पल खाये जा रहे हैं। बच्चे को जन्म देने के तमाम दर्द भुगतते हुए भी ईव आबादी बढ़ाने में आदम का साथ दिये जा रही हैं। मजे लेकर एप्पल खाये जाने के आदम और ईव के इस प्रकरण से उसकी बनाई दुनियां की आबादी इस रफ्तार से बढ़ रही है कि हम आठ अरब हो चुके हैं। कम से कम आबादी के मामले में जल्दी ही हम चीन से आगे निकलने वाले हैं।
इसके बावजूद कि कोरोना जैसी महामारियां हुईं, भुखमरी, चक्रवाती तूफान, भयावह भूकंप, बाढ़, आगजनी जैसी विपदाएं होती ही रही। आदम और ईव कथित ईगोइस्ट आदमी की नस्ल में बदल दंगे फसाद, कत्लेआम, आतंकवादी हत्याएं करने से रुक नहीं रहे। रही सही कसर पूरी करने के लिए कई कई ‘आफ़ताब’ ढेरों ‘श्रद्धाओं’ के टुकड़े टुकड़े, बोटी बोटी कर रहे हैं, फिर भी आदम और ईव का कुनबा दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ा जा रहा है। अनवरत बढ़ा जा रहा है। यूँ मुझे आठ अरब होने से कोई प्रॉब्लम नहीं है, जब सरकारों को कोई प्रॉब्लम नहीं है, यूनाइटेड नेशंस को कोई समस्या नहीं है तो मुझे समस्या होनी भी नहीं चाहिए। वैसे भी जिन किन्हीं संजय गांधियो को इस बढ़ती आबादी से दिक्कत महसूस हुई उन्हें जनता ने नापसंद किया है। फिर भी हिम्मत का काम हो रहा है जनसंख्या कानून की गुप चुप चर्चा की सुगबुहाअट तो जब तब सुन पड़ रही है। अपनी तो दुआ है खूब आबादी बढ़े, क्योंकि आबादी वोट बैंक होती है और वोट से ही नेता बनते हैं, राजनीति चलती है। मुझे दुःख केवल इस बात का है की कोई नया कोलम्बस क्यों पैदा नहीं हो रहा जो एक दो और अमेरिका खोज निकाले। हो सके तो महासागर ही पांच की जगह कम से कम सात ही हो जाएँ, हम तो कब से गए जा रहे हैं “सात समुन्दर पार से, गुड़ियों के बाजार से “ पर समुन्दर पांच के पांच ही हैं। महाद्वीप भी बस सात के सात हैं।
हम जंगलो को काट काट कर नए नए महानगर जरूर बसाये जा रहे हैं पर उनका आसमान महज़ एक ही है। सूरज बस एक ही है। आठ अरब थके हारे आदम जात को सुनहरे सपनों वाली चैन की नींद में सुलाने, लोरी सुनाने के प्रतीक दूर के चंदामामा भी सिर्फ एक ही हैं। मुश्किल है कि इंसानो में बिलकुल एका नहीं है। मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना, अब आठ अरब भिन्न भिन्न दृष्टिकोण होंगे तो आखिर कैसे मैनेज होगी दुनियां। इसलिए हे आदम और ईव कृपया एप्पल खाना कम करो। धरती पर आबादी का बोझा कम करो ।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
न्यूजर्सी , यू एस ए
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈