श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना पाठशाला . अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 10 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ पाठशाला ☆
लगती है परिंदों की पाठशाला ,
वृक्ष की कक्षाओं में ।
गूँज उठती हैं हर दिशा ,
इस पाठ के दुहराव में ।
चीं -चीं करती माँ चिड़ियाँ ,
क्या कुछ नन्हे को सिखलाती है ।
कुछ आरोहित स्वर में ,
घटनाक्रम समझाती है ।
मैं खिड़की से देख दृश्य ,
भ्रमित हर बार हो जाती हूँ ।
इतने शब्द है मेरे पास ,
पर ना अंश को समझा पाती हूँ ।
नन्हे परिन्दें माँ की सीख
आत्मसात कर जाते है ।
अंश मेरी सीख पर
प्रश्न चिन्ह लगाते है ।
क्या मस्तिष्क का विकसित होने
विकास की निशानी है ।
या परिदों सा जीवन जीना ,
जीवन की कहानी है ।
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र