श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “माँ के बुने हुए स्वेटर से…”। )
☆ तन्मय साहित्य #160 ☆
☆ माँ के बुने हुए स्वेटर से… ☆
लगे काँपने कंबल
बेबस हुई रजाई है
ठंडी ने इस बार
जोर से ली अँगड़ाई है।।
सर्द हवाएँ सुई चुभाए
ठंडे पड़े बदन
ओढ़ आढ़ कर बैठे लेटें
यह करता है मन,
बालकनी की धूप
मधुर रसभरी मलाई है।
ठंडी में…
धू-धू कर के लगी जलाने
जाड़े की गर्मी
रूखी त्वचा सिकुड़ते तन में
नष्ट हुई नरमी,
घी-तेलों से स्नेहन की
अब बारी आई है।
ठंडी ने….
बाजारु जरकिनें विफल
मुँह छिपा रहे हैं कोट
ईनर विनर नहीं रहे
उनमें भी आ गई खोट,
माँ के बुने हुए स्वेटर से
राहत पाई है।
ठंडी ने….
घर के खिड़की दरवाजे
सब बंद करीने से
सिहरन भर जाती है
तन में पानी पीने से,
सूरज की गुनगुनी धूप से
प्रीत बढ़ाई है।
ठंडी ने….
कैसे जले अलाव
पड़े हैं ईंधन के लाले
जंगल कटे,निरंकुश मौसम
लगते मतवाले
प्रकृति दोहन स्पर्धा की अब
छिड़ी लड़ाई है।
ठंडी ने….।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈