प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “आँसू कभी न टपके…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #110 ☆ ग़ज़ल – “आँसू कभी न टपके…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
जो भी मिली सफलता मेहनत से मैंने पायी
दिन रात खुद से जूझा किस्मत से की लड़ाई।
जीवन की राह चलते ऐसे भी मोड़ आये
जहां एक तरफ कुआं था औ’ उस तरफ थी खाई।
काटों भरी सड़क थी, सब ओर था अंधेरा
नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ’ तनहाई।
सब सहते, बढ़ते जाना आदत सी हो गई अब
किसी से न कोई शिकायत, खुद की न कोई बड़ाई।
लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिन्दगी है
चाहे पहाड़ टूटे, चाहे हो बाढ़ आई।
आँसू कभी न टपके, न ही ढोल गये बजाये
फिर भी सफर है लम्बा, मंजिल अभी न आई ।
दुनिया की देख चालें, मुझको अजब सा लगता
बेबात की बातों में दी जाती जब बधाई।
सुख में ’विदग्ध’ मिलते सौ साथ चलने वाले
मुश्किल दिनों में लेकिन, कब कौन किसका भाई ?
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈