श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका संस्मरण – “कमी नहीं है कद्रता की…”।)
☆ संस्मरण – “कमी नहीं है कद्रता की…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
देखा जाए तो संघर्ष का नाम ही जीवन है, इस दुनिया में हम खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जाते हैं, बीच का समय होता है और इस बीच के समय में जिसने संघर्ष से नजर मिला ली उसने जीवन जीत लिया।
यदि मन में हो संकल्प और इरादे हों मजबूत तो कोई भी इंसान मेहनत कर अपनी मंजिल हासिल कर सकता। उमरिया जिले के बियाबान जंगल के बीच बसे पिछड़े आदिवासी गांव का प्रताप गौड़ जब घिटकते घिसटते स्टेशन रोड स्थित ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) उमरिया के आफिस पहुंचा तो उसकी आंखों में चमक थी, उसके अंदर जुनून की ज्वाला भभक रही थी उसके अंदर कुछ सीखने की ललक अंगड़ाई ले रही थी, उसने बताया कि वह चंदिया के पास एक गांव का रहने वाला है,गौंड़ जाति का है उसका नाम गरीबी रेखा में है और वह आठवीं पास है,दो दिन बाद आरसेटी में ड्रेस डिजाइन का प्रशिक्षण चालू होने की खबर से वह तीस चालीस किलोमीटर दूर गांव से घिसटते घिसटते आया था, उसके दोनों पैर पोलियो से बचपन मे खराब हो गए थे और वह चल फिर नहीं सकता था दोनों हाथ ही उसके दो पैर का भी काम करते थे, उसको देखकर दया आई, पर उसके जुनून और कुछ करने की तमन्ना को देखते हुए हमने ड्रेस डिजाइन के पचीस दिवसीय प्रशिक्षण में उसका एडमिशन कर लिया। चौबीस और प्रशिक्षणार्थियों को शामिल किया गया जो उमरिया जिले के अलग-अलग गांवों से आए हुए थे। आवासीय प्रशिक्षण में एडमिशन पाकर प्रताप खुश था। उसकी दिनचर्या अन्य बच्चों से अधिक आदर्श थी सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर पूजा पाठ करता समय पर तैयार हो जाता। हर काम करने में अव्वल रहता। पच्चीस दिनों में उसने अपना एक अलग इम्प्रेसन बना लिया था। अब वह कुछ करना चाहता था। गांव में गरीबी थी, पिता बीमार रहते थे बहुत गरीब थे घर में एक जून की रोटी मिल जाए ये भी भाग्य की बात होती थी। प्रताप को रोजगार से लगाने की चिंता सभी को हुई। जिला उद्योग केन्द्र से उसका रोजगार योजना का केस बनवाया गया। केस उसके गांव के पास की स्टेट बैंक की चंदिया शाखा भिजवाया गया। फिर ड्रेस डिजाईन व्यवसाय को अपना कर एक अच्छी जिंदगी की शुरुआत करने की तमन्ना लेकर विकलांग बालक प्रताप सिंह गोँड के जीवन मे उम्मीद की किरण भारतीय स्टेट बैंक चँदिया शाखा के वित्त पोषण से हुई ।
उसने एसबीआई आर सेटी उमरिया से ड्रेस डिजाईन का प्रशिक्षण प्राप्त किया जिला उद्योग व्यापार केंद्र ने रानी दुर्गावती योजना मे उसका ऋण प्रकरण बनाया और चँदिया शाखा से उसका ऋण स्वीकृत हो गया । एक कार्यक्रम के दौरान हमारी उपस्थिति में परसाई शाखा प्रबंधक एवं अन्य गणमान्य नागरिकों के बीच प्रताप सिंह को सिलाई मशीन, इंटरलॉक मशीन, अलमारी, और कपड़े खरीदने हेतु चेक का वितरण एसबीआई आर सेटी उमरिया के माध्यम से किया गया। प्रताप सिंह गोँड ने इस अवसर पर बताया की स्टेट बैंक चँदिया ने उसे नया जीवन प्रदान किया और बैंक द्वारा दिये गए समान से यह अपनी बेरोजगारी एवं गरीबी को ख़त्म करके रहेगा। उसने अपने गांव में एक छोटी सी दुकान खोली और अपने हुनर से आसपास के गांव से उसके पास सिलाई कढ़ाई के काम आने लगे, व्यवहार, समयबद्धता और अपने काम से उसके पास भीड़ लगने लगी। फिर उसने एक दो दोस्तों को काम सिखा कर उन्हें भी रोजगार दे दिया, बैंक की हर किश्त हर महीने की पांच तारीख को जमा होती बैंक वाले भी आश्चर्यचकित कि उन्हें ऐसा पहला ग्राहक मिला जो हर पांच तारीख को किश्त चुकाता है जबकि बैंक का बीसों साल का रिकॉर्ड था कि शासकीय योजनाओं में लोग पांच पांच साल किश्त नहीं चुकाते।
एक दिन मोबाइल में किसी मित्र का मोबाइल नंबर ढूंढते हुए अचानक प्रताप के गांव के सरपंच का नंबर दिख गया। प्रताप गौंड़ की याद आ गई, फिर सरपंच ने प्रताप का मोबाइल नंबर दिया। प्रताप के नंबर को मिलाया, वहां से एक ताजगी भरी आवाज आयी एक छोटी बच्ची पूंछ रही थी अंकल आप किससे बात करना चाहते हैं, मैंने प्रताप गौंड़ का नाम बताया। उसकी फोन पर आवाज आयी पापा किसी अंकल का फोन है। मुझे बेहद खुशी हुई। प्रताप आत्मनिर्भर होकर बाल बच्चे वाला हो गया है। प्रताप से पता चला कि उसने रेडीमेड गारमेंट का कारखाना खोल लिया था और ऊपर वाले की कृपा से अब सब कुछ है हमारे पास…. आपने और बैंक ने हमें इस काबिल बनाया कि हमारे सब दुख दूर हो गये और अब हम ईमानदारी से इन्कम टैक्स भरने लगे हैं। आज ग्यारह साल हो गए इस बात को… जब प्रताप घिसटते घिसटते मेरे आफिस के बाहर मुझे कातर निगाहों से देख रहा था। मुझे लगा वो सारे लोग जो हमारे आसपास अनन्त सम्भावनाओं से भरे होते हैं पर कई बार अवसरों के अभाव में, तो कई बार जानकारी और संसाधनों के अभाव में अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग नहीं कर पाते उनके लिए उनके कहे बिना कुछ ऐसा कर कर देना जिससे उनका वर्तमान और भविष्य बेहतर बन जाए कितनी सुन्दर बात है ना…।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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