श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “चिड़िया चुग गई खेत…”। )
☆ तन्मय साहित्य #161 ☆
☆ चिड़िया चुग गई खेत… ☆
रहे देखते स्वप्न सुनहरे
चिड़िया चुग गई खेत
बँधी हुई मुट्ठी से फिसली
उम्मीदों की रेत।
पूर्ण चंद्र रुपहली चाँदनी
गर्वित निशा, मगन
भूल गए मद में करना
दिनकर का अभिनंदन,
पथ में यह वैषम्य बने बाधक
जब हो अतिरेक
बँधी हुई मुट्ठी से फिसली….।
मस्तिष्कीय मचानों से
जब शब्द रहे हैं तोल
संवेदनिक भावनाओं का
रहा कहाँ अब मोल,
अंतर्मन है निपट मलिन
परिधान किंतु है श्वेत
बँधी हुई मुट्ठी से….।
लगे हुए मेले फरेब के
प्रतिभाएँ हैं मौन
झूठ बिक रहा बाजारों में
सत्य खरीदे कौन,
एक अकेला रंग सत्य का
झूठ के रंग अनेक
बँधी हुई मुट्ठी से फिसली
उम्मीदों की रेत।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈