श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 148 ☆

☆ संतोष के दोहे  – शराब पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

नव पीढ़ी इस नशे में,डूब रही है आज

ज्यों ज्यों बन्दिश लग रहीं, त्यों त्यों बढ़ती चाह

नशा कहे मुझसे बड़ा, यहाँ न कोई शाह

 

पाबंदी के बाद भी, बिकती बहुत शराब

शासन बौना सा लगे, सूझे नहीं जवाब

 

कुछ सरकारें चाहतीं, बिकती रहे शराब

मिले अर्थ मन-भावना, पूर्ण करे जो ख्वाब

 

कानूनों में ढील दे, खूब दे रहे छूट

गाँव-गाँव ठेके खुले, पियो घूँट पर घूँट

 

आदिवासियों को मिला, पीने का अधिकार

पीकर बेचें वे सभी, कहती यह सरकार

 

कच्ची विष मय सुरा को, पीकर मरते लोग

उनको फाँसी दीजिए, जो लगवाते भोग

 

सरकारों को चाहिए, सिर्फ न देखें अर्थ

जनता रहे सुसंस्कृत, जीवन न हो व्यर्थ

 

धर्म ग्रंथ कहते सभी, पियें न कभी शराब

साख गिराता आपनी, पैसा करे खराब

 

तन करती यह खोखला, विघटित हों परिवार

बीमारी आ घेरती, बढ़ते बहुत विकार

 

सुरा कभी मत पीजिए, ये है जहर समान

करवाती झगड़े यही, गिरे मान सम्मान

 

जीवन भक्षक है सुरा, इससे रहिए दूर

क्षीर्ण करे बल,बुद्धि को, तन पर रहे न नूर

 

दारू में दुर्गुण बहुत, कहते चतुर सुजान

पशुवत हो जाते मनुज, करे प्रभावित ज्ञान

 

नव पीढ़ी इस नशे में, डूब रही है आज

उबर सकें इससे सभी, कुछ तो करे समाज

 

बढ़ता फैशन नशे का, आज सभी लाचार

गम में कोई पी रहा, कोई बस त्योहार

 

सबके अपने कायदे, पीने को मजबूर

कवि-शायर भी डालते, पावक घी भरपूर

 

नशा राम का कीजिये, लेकर उनका नाम

जीवन में “संतोष” तब, बनते बिगड़े काम

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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