डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 161 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – शेष ☆
अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।
ब्रह्म सत्य अब हो गया, मिला बड़ा ही शाप।।
सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।
मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।
सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।
सोते देख रावण को, आया है आवेश।।
चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।
रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।
परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।
भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।
भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।
देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।
सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।
घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।
कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।
चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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