डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख जुनून बनाम नफ़रत। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 162 ☆
☆ जुनून बनाम नफ़रत ☆
‘जुनून जैसी कोई आग नहीं/ नफ़रत जैसा कोई दरिंदा नहीं/ मूर्खता जैसा कोई जाल नहीं/ लालच जैसी कोई धार नहीं’ महात्मा बुद्ध की यह उक्ति अत्यंत कारग़र है, जिसमें संपूर्ण जीवन-दर्शन निहित है। जुनून वह आग है, जो मानव को चैन से बैठने नहीं देती; निरंतर गतिशीलता प्रदान कर अथवा कुछ कर गुज़रने का संदेश देती है। यदि मानव ठीक दिशा की ओर अग्रसर होता है, तो वह अपनी मंज़िल पर पहुंच कर ही सुक़ून पाता है; रास्ते में आने वाली बाधाओं का साहस-पूर्वक सामना करता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति घृणा भाव से ग्रस्त है, तो वह मूर्खतापूर्ण व्यवहार करता है तथा स्वयं को विश्व का सबसे अधिक बुद्धिमान इंसान समझता है।
नफ़रत वह दरिंदा है, जो पलभर में मानव के मनोमस्तिष्क को दूषित कर परिंदे की भांति उड़ जाता है और उस स्थिति में वह सोचने-समझने की शक्ति खो बैठता है। वह राह में आने वाली आगामी बाधाओं, आपदाओं व दुष्वारियों का सामना नहीं कर पाता। वह मूर्ख उस जाल में फंस कर रह जाता है। वह औचित्य-अनौचित्य व सही-गलत का भेद नहीं कर पाता और उसे अपने अतिरिक्त सब निपट बुद्धिहीन नज़र आते हैं। वह और अधिक धन-संपदा पाने के चक्कर में उलझ कर रह जाता है और उसकी लालसा व हवस का कभी भी अंत नहीं होता। जब व्यक्ति उसके व्यूह अर्थात् मायाजाल में उलझ कर रह जाता है और सब संबंधों को नकारता हुआ चला जाता है। उस स्थिति में दूसरों की पद-प्रतिष्ठा उसके लिए मायने नहीं रखती। अपने सपनों को साकार करने के लिए वह रास्ते में आने वाले व्यक्ति व बाधाओं को हटाने व समूल नष्ट करने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करता।
इसीलिए मानव को सकारात्मक सोच रखते हुए लक्ष्य निर्धारित करने तथा उसे प्राप्त करने के लिए जी-जान से जुट जाने की सीख दी गयी है। अब्दुल कलाम जी ने मानव को जागती आंखों से स्वप्न देखने व बीच राह थक कर न बैठने का संदेश दिया है; जब तक उसे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती। इसलिए महात्मा बुद्ध मानव को करुणा व प्रेम का संदेश देते हुए नफ़रत करने वालों से सचेत रहने की सीख देते हैं, क्योंकि नफ़रत वह चिंगारी है, जो व्यक्ति, परिवार, समाज व पूरे देश में तहलक़ा मचा देती है। धार्मिक उन्माद इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सो! मानव हृदय में सबके प्रति स्नेह, सौहार्द व प्रेम का भाव होना चाहिए, क्योंकि जहां प्रेम होगा, नफ़रत वहां से नदारद होगी। इंसान को सावन के अंधे की भांति सब ओर हरा ही हरा दिखाई पड़ता है। इसलिए उसे उसके साए से भी दूर रहना चाहिए, क्योंकि वह उसे कभी भी कटघरे में खड़ा कर सकता है।
लालच बुरी बला है और उस भाव के जीवन में प्रकट होते ही मानव का अध:पतन प्रारंभ हो जाता है। लालची व्यक्ति किसी भी सीमा तक नीचे जा सकता है और उसकी लालसा का कभी अंत नहीं होता। पैसा इंसान को बिस्तर दे सकता है, नींद नहीं; भोजन दे सकता है, भूख नहीं; अच्छे वस्त्र दे सकता है’ सौंदर्य नहीं; ऐशो-आराम के साधन दे सकता है, सुक़ून नहीं। इसलिए मानव का आचार-व्यवहार सदैव पवित्र होना चाहिए, क्योंकि ग़लत ढंग से कमाया हुआ धन मानव को सदैव अशांत रखता है। उसका हृदय सदैव आकुल- व्याकुल व आतुर रहता है। सो! मानव को सत्य की राह पर चलते हुए ग़लत लोगों की संगति का परित्याग कर सबसे प्रेम के साथ रहना चाहिए। संत पुरुषों ने भी मानव को हक़-हलाल की कमाई पर जीवन-यापन करने का उपदेश दिया है, क्योंकि ग़लत ढंग से कमाया हुआ धन जहां बच्चों को दुष्प्रवृत्तियों की ओर धकेलता है, वहीं उन्हें कुसंस्कारित व पथ-विचलित करता है। जुनून वह आग है, जो चिराग बनकर जहां घर को रोशन कर सकती है; वहीं उसे जला कर राख भी कर सकती हैं। उस स्थिति में शेष कुछ भी नहीं बचता। इसलिए कभी ग़लत मत सोचो, न ही ग़लत करो, क्योंकि दोनों स्थितियां मानव को संपूर्णता प्रदान करती हैं।
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी
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