प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “’सद्भाव औ’ सहयोग में ही…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #111 ☆ ग़ज़ल – “’सद्भाव औ’ सहयोग में ही…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
हो रहा उपयोग उल्टा अधिकतर अधिकार का
शान्ति-सुख का रास्ता जबकि है पावन प्यार का।
जो जुटाते जिंदगी भर छोड़ सब जाते यहीं
यत्न पर करते दिखे सब कोष के विस्तार का।
सताती तृष्णा सदा मन को यहाँ हर व्यक्ति के
पर न करता खोज कोई भी सही उपचार का।
लोभ, लालच, कामनायें सजा नित चेहरे नये
लुभाये रहते सभी को सुख दिखा संसार का।
वसन्ती मौसम की होती आयु केवल चार दिन
मनुज पर फँस भूल जाता लाभ षुभ व्यवहार का।
ऊपरी खुशियां किसी की भी बड़ी होतीं नहीं
फूल झर जाते हैं खिलकर है चलन संसार का।
इसलिये चल साथ सबके प्यार का व्यवहार कर
सिर्फ पछतावा ही मिलता अन्त अत्याचार का।
सहयोग औ’ सद्भावना में ही सदा सब सुख बसा
नहीं कोई इससे बड़ा व्यवहार है उपहार का।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈