श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 152 ☆
☆ कविता – डाक्टर ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
डाक्टर भगवान था,
शैतान बन गया।
वो रहम दिल इंसान था,
हैवान बन गया।
क्या हो! अगर जो डाक्टर,
इंसान बन जाए।
चरित्र उसका बाइबिल, गीता,
कुरआन बन जाए।
रोता हुआ जो कोई,
उनके दर पे आए।
पाए सुकून दिल में,
हंसता हुआ घर जाए।
दिल को करार आए,
इनकी सूरत देखकर।
श्रद्धा से सिर झुके,
इनकी रहमत देख कर।
पाए खुदा का दर्जा,
इंसानियत के नाते।
बन के फकीर सबको,
जो अपनी खुशियां बांटें।
चरक सुश्रुत संहिता,
लिख गए जो भाई।
धनवंतरी जी बन कर,
करते जगत भलाई ।।
पर आज के कुछ डाक्टर,
दौलत को पूजते हैं।
बन राह के लुटेरे,
लोगों को लूटते हैं।
सींचते हैं अपने बाग को,
लोगों के खून से।
भरते हैं अपनी झोलियां,
लूटे गए धन से।
वो चीरते जिगर है,
गुर्दे भी बेचते हैं।
जिंदों की बात छोड़िए,
मुर्दा भी बेचते हैं।
इंसानियत के दुश्मन,
इंसान के हत्यारे।
मुर्दे भी कैद करते,
पैसों के लिए प्यारे।
कर्मों पे आज इनके,
मानवता रो रही है।
ये पत्थर दिल है भाई,
सद्भावना नहीं है।
खाते कमीशन खूब,
भगवान से न डरते।
पैसों की खातिर देखो,
हर काम गलत करते।
इनकी वजह से पेशा,
बदनाम हो रहा है।
इनके वजह से सम्मान,
नीलाम हो रहा है।।
चाहत भी इनकी बदली,
इनको दया न आई।
वो डाक्टर थे भाई,
ये डाक्टर है भाई।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈