श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#हिस्सा …#”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 109 ☆
☆ # हिस्सा … # ☆
हमने अपने करीबी मित्र को समझाया
भाई, शराब बुरी चीज है
फिर भी तुम्हें
क्यों अजीज़ है ?
घर, परिवार टूट जाते हैं
लोग सड़क पर
आ जाते हैं
तुम इससे नाता तोड़ो
पीने की आदत छोड़ो
वो बोला –
भाई, पहले कहां पीता था
मस्ती मे जीवन जीता था
फिर –
पहले आई नोटबंदी
फैक्टरी मे हो गई तालाबंदी
फिर आई कोरोना की माहामारी
घर में लाई बेरोजगारी
लॉक डाऊन शहर में लग गया
इस शराब का ग्रहण
हमारे जीवन को लग गया
अब नुक्कड़ पर
सब्जी का ठेला लगाते हैं
थोड़ा बहुत पेट भरने के
लायक कमाते हैं
मंहगाई ने
कमर तोड़ दी है
बीमार पत्नी ने
जीने की आस छोड़ दी है
भूख, गरीबी और बेरोजगारी ने
हमें घेर लिया है
सब रिश्तेदारों ने
मुंह फेर लिया है
जीने की कशमकश में
हर पल
लड़ना पड़ता है
थक हार कर
मजबूरी में पीना पड़ता है
दोस्त,
यह सिर्फ मेरा नहीं
हजारों पीड़ित बेरोजगारों का
किस्सा है
इस चकाचौंध वाले विकास में
हम ढूंढ रहे हैं
हमारा कहां हिस्सा है/
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈