श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर, विचारणीय एवं चिंतनीय – चिंतन – “ऐसे भी बदलता है नाम”।)
☆ आलेख # 167 ☆ चिंतन – “ऐसे भी बदलता है नाम” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
सन् 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय लगभग एक लाख पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेकते हुए आत्मसमर्पण किया था, उन युद्ध बंदियों को सामरिक दृष्टि से सबसे सुरक्षित स्थान होने के कारण जबलपुर में रखा गया था और उन्हें बाद में जरपाल गेट (ग्रेनेडियर रेजिमेंट) ग्वारीघाट रोड से रिहा किया गया था।
इसी पर से तिराहे को ‘बंदी रिहा तिराहा’ कहा गया, जो बाद में अपभ्रंश होकर ‘बंदरिया तिराहा’ कहा जाने लगा, तो भैया नाम की माया अपरंपार है।
कोई नाम बिगाड़ता है, कोई नाम बनाता है, कोई नाम बदलता है, कहीं नाम बदलने पर दंगल होता है, तो कहीं नाम डूबा देता है। सब राम नाम की माया है, तभी तो कहते हैं राम नाम सत्य है।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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