सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “रूहानियत”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 18 ☆

☆ रूहानियत

मिटना ही है एक दिन,

मिट ही जायेंगे तेरे बोल!

माती सा तेरा जिस्म,

इसका कहाँ कहीं कोई मोल?

 

आवाज़ का ये जो दरिया है

किसी दिन ये सूख जाएगा;

और ये जो चाँद सा रौशन चेहरा है

अमावस्या में ढल जाएगा!

 

ये जो मस्तानी सी तेरी चाल है,

इसका कहाँ कुछ रह जाएगा?

ये जो छोटा सा तेरा ओहदा है,

ये तो उससे भी पहले ख़त्म हो जाएगा!

 

ये जो तेरी इतराती हुई हँसी है,

ये भी चीनी सी घुल जायेगी;

ये जो बल खाती तेरी अदाएं हैं,

ये तुझसे चुटकी में जुदा हो जायेंगी!

 

सुन साथी, इन बातों पर तू गुमान न कर,

ये सब तो ख़ुदा की ही देन हैं!

सर झुका ले ख़ुदा के आगे,

ये तेरा हर जलवा ख़ुदा का प्रेम है!

 

जिस दिन तू रूहानियत के

कुछ करीब आ जाएगा;

उसी दिन सुन ए साथी,

तू मुकम्मल हो जाएगा!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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