श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी सपनों की दुनियां की सैर कराती एक प्यारी सी लघुकथा “सच होता ख्वाब ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 145 ☆

🌺लघुकथा 🥳 सच होता ख्वाब 🥳

मिनी को बचपन से सिंड्रेला की कहानी बहुत पसंद आती थी। कैसे सिंड्रेला को उसका अपना राजकुमार मिला। वह जैसे-जैसे बड़ी होने लगी ख्वाबों की दुनिया फलती – फूलती गई।

धीरे-धीरे पढ़ाई करते-करते मिनी अपने सुंदर रूप रंग और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण सभी की प्यारी बन गई थी। घर परिवार में सभी उसको बहुत प्यार करते थे।

शहर से थोड़ी दूर पर उसका अपना घर था। घर के आसपास पड़ोसी और उसके साथ पढ़ने वाले शहर तक आया जाया करते थे। मिनी भी साथ ही सबके आती जाती थी। आज कॉलेज का फार्म भरने मिनी अपनी सहेलियों के साथ सिटी आई थी। काम खत्म होने के बाद सभी ने मॉल घूमने का प्रोग्राम बनाया।

मॉल में सभी घूम रहे थे अचानक मिनी की चप्पल टूट गई। सभी ने कहा… चल मिनी आज मॉल की दुकान से ही तुम्हारी चप्पल खरीद लेते हैं। दो तीन फ्रेंड मिलकर दुकान पहुंच गई। चप्पल निकाल- निकाल कर ट्राई करती जा रही थी। अचानक उसकी नजर सामने लगे बहुत बड़े आईने पर पड़ी। पीछे एक खूबसूरत नौजवान लड़का मिनी को बड़े ध्यान से देख रहा था। मिनी जितनी बार चप्पल जूते ट्राई करती वह इशारा करता और मुस्कुरा रहा था कि शायद हां या नहीं।

मिनी को भी उसका यह भाव अच्छा लगा। बाकी फ्रेंड को इसका बिल्कुल भी पता नहीं चला। अचानक एक सैंडल उसने उठाई। जैसे ही वह पैरों पर डाली। आईने की तरफ नजर उठाकर देखी वह नौजवान हाथ और आंख के ईशारे से परफेक्ट का इशारा कर मुस्कुरा रहा था।

मिनी को पहली बार एहसास हो रहा था, शायद उसके सपनों का राजकुमार है। उसने तुरंत सैंडल लिया। काउंटर पर बिल जमा कर देख रही थीं। वह नौजवान धीरे से एक कागज थैली में डाल रहा है।

मिनी मॉल से निकलकर उस कागज को पढ़ने लगी लिखा था…

मैं तुमको नहीं जानता, तुम मुझे नहीं जानती, परंतु मैं विश्वास दिलाता हूं तुम्हारी भावनाओं की इज्जत करता हूं। तुम्हारे चरण मेरे घर आएंगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी। मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा

तुम्हारा पीयूष

उस कागज को मिनी ने संभाल कर रख लिया और घर में किसी से कुछ नहीं बताया। पर मन में बात जंच गई थी। आज बहुत दिनों बाद घर में पापा के नाम एक कार्ड देखकर चौक गई। पास में एक जूते चप्पल की दुकान का उद्घाटन हो रहा था। कार्ड को जैसे ही मिनी ने  पढ़ा दिलो-दिमाग पर हजारों घंटियां बजने लगी।

मम्मी पापा ने कहा… मेरे दोस्त का बेटा शहर से आया है। उसने यहां एक दुकान शुरू की है। सब को बुलाया है मिनी तुम्हें भी चलना है।

मिनी को जैसे को पंख लग गए। शाम को मिनी बहुत सुंदर तैयार हो वही सैंडल पहन कर, जब दुकान पर पहुंची, फूलों के गुलदस्ते से सभी का स्वागत हुआ। मिनी सकुचा रही थी सामने पीयूष खड़ा था।

परंतु दोनों के मम्मी – पापा आंखों आंखों के  इशारे से मंद- मंद मुस्कुरा रहे थे। उसने कहा…. मेरी सिंड्रेला आपका स्वागत है। फूलों की बरसात होने लगी मिनी कुछ समझ पाती इसके पहले मम्मी ने धीरे से उसका कागज दिखाया।

मिनी शर्म से लाल हो गई पता नहीं मम्मी ने कब यह पत्र पढ़ लिया। परंतु इससे उसे क्या??? उसको तो अपने ख्वाबों का राजकुमार मिल गया। आज उसका ख्वाब सच हो गया और वह बन गई सिंड्रेला। बहुत खुश हो रही थी मिनी।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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