(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित एक विचारणीय आलेख– स्त्री विमर्श ।)
आलेख– स्त्री विमर्श
स्त्री पुरुष समानता आज समय की आवश्यकता है। नारी के प्रति समाज की कुत्सित दृष्टि के चलते ही लाल किले की प्राचीर से , स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने भाषण में यह अपील करनी पड़ी की समाज स्त्री के प्रति अपना नजरिया बदले , पर आए दिन नई नई घटनाएं , प्यार के नाम पर धोखा , क्रूर हत्या जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं।
साहित्य में इस विषय पर चर्चा और रचनायें हो रही हैं । “नारी के अधिकार “, “नारी वस्तु नही व्यक्ति है” ,वह केवल “भोग्या नही समाज में बराबरी की भागीदार है” , जैसे वैचारिक मुद्दो पर लेखन और सृजन हो रहा है, पर फिर भी नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में वांछित सकारात्मक बदलाव का अभाव है .
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”
अर्थात जहाँ नारियो की पूजा होती है वहां देवताओ का वास होता है यह उद्घोष , समाज से कन्या भ्रूण हत्या ही नही , नारी के प्रति समस्त अपराधो को समूल समाप्त करने की क्षमता रखता है , जरूरत है कि इस उद्घोष में व्यापक आस्था पैदा हो . नौ दुर्गा उत्सवो पर कन्या पूजन , हवन हेतु अग्नि प्रदान करने वाली कन्या का पूजन हमारी संस्कृति में कन्या के महत्व को रेखांकित करता है , आज पुनः इस भावना को बलवती बनाने की आवश्यकता है .
एक संवेदन शील रचनाकार या स्त्री लेखिका जब स्वयं स्त्री विमर्श की रचना लिखती है तो वह भोगा हुआ यथार्थ , सही गई पीड़ा को शब्द देती हैं। निश्चित ही ऐसी कवितायें बेहद संवेदनशील संदेश देती हैं।
प्रेम स्त्री की मौलिकता है, वह स्थितप्रज्ञ बनी रहकर अंतिम संभव पल तक अपने कर्तव्य का परिपालन करती है, इसी से प्रकृति संचालित है।
जिस तरह विद्योत्तमा ने कालिदास के बंद मुक्के की व्यापक व्याख्या कर दी थी , वैसे ही स्त्री विमर्श के इस मुद्दे की गूढ़ लंबी विवेचना की जा सकती है, जरूरत है कि समाज पर साहित्य का प्रभाव हो और स्त्री पर अपराध रुकें ।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
न्यूजर्सी , यू एस ए
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈