श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “जो नहीं कुछ भी…”। )
☆ तन्मय साहित्य #162 ☆
☆ जो नहीं कुछ भी… ☆
जो, नहीं कुछ भी बोलते होंगे
दिल तो उनके भी खौलते होंगे।
हाथ में, जिनके न तराजु है
सबको आँखों से तौलते होंगे।
जहर भरा है द्वेष, ईर्ष्या का
विषधरों से वे डोलते होंगे।
बोल अमृत से हैं जिनके वे भी
विष कहीं पर तो घोलते होंगे।
बातें इतिहास की सुनाते जो
शब्द उनके भूगोल के होंगे।
उनके भाषण सुनें तो पायेंगे
गरीब के मखौल के होंगे।
है मजूरों के पास जो कुछ भी
वो पसीने के मोल के होंगे।
बाद, तकरार के, बुलाया है
मन्सूबे मेल – जोल के होंगे।
बेखबर जो हैं, स्वयं अपने से
खुद को बाहर टटोलते होंगे।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सार्थक चिन्तन।