श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “संतोष के दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 149 ☆
☆ संतोष के दोहे – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆
अपनों ने ही कर दिया, घायल जब अहसास
गैरों पर करते भला, हम कैसे विश्वास
मुँह पर मीठा बोलते, मन कालिख भरपूर
ऐसे लोगों से रहें, सदा बहुत हम दूर
कथनी करनी में नहीं, जिनकी बात समान
कभी भरोसा न करें, उन पर हम श्रीमान
दिल के रिश्तों में सदा, कभी न होता स्वार्थ
मतलब के संबंध बस, होते हैं लाभार्थ
रिश्ते-नाते हो रहे, आज एक अनुबंध
जब दिल चाहा तोड़ते, रहा न अब प्रतिबंध
प्रेम समर्पण में रखा, शबरी ने विश्वास
कुटी पधारे राम जी, रख कायम अहसास
तकलीफें मिटतीं मगर, रह जाता अहसास
छीन सके न कोई भी, जो दिल के है पास
रहता है जो सामने, पर हो ना अहसास
उस ईश्वर को समझिए, जिसका दिल में वास
पकड़ न पायें जिसे हम, जिसकी ना पहचान
मैं अंदर की चीज हूँ, समझो तुम नादान
गलती को स्वीकारिये, हो जब भी अहसास
मिलता है संतोष तब, कभी न हो उपहास
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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