प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “जिन्दगी …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #112 ☆ ग़ज़ल – “’जिन्दगी …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
सुख दुखों की एक आकस्मिक रवानीं जिंदगी
हार-जीतों की की बड़ी उलझी कहानीं जिंदगी
व्यक्ति श्रम और समय को सचमुच समझता बहुत कम
इसी से संसार में धूमिल कई की जिंदगी ।।1।।
कहीं कीचड़ में फँसी सी फूल सी खिलती कहीं
कहीं उलझी उलझन में, दिखती कई की।
पर निराशा के तमस में भी है आशा की किरण
है इसीसे तो है सुहानी दुखभरी भी जिंदगी ।।2।।
कहीं तो बरसात दिखती कहीं जगमग चाँदनी
कहीं हँसती खिल-खिलाती कहीं अनमन जिंदगी।
भाव कई अनुभूतियाँ कई, सोच कई, व्यवहार कई
पर रही नित भावना की राजधानी जिंदगी ।।3।।
सह सके उन्होंने ही सजाई है कई की जिंदगी
कठिनाई से जो उनने नित रचा इतिहास
सुलभ या दुख की महत्ता कम, महत्ता है कर्म की
कर्म से ही सजी सँवरी हुई सबकी जिंदगी ।।4।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈