डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – शिरोधार्य आदेश तुम्हारा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 119 – गीत – शिरोधार्य आदेश तुम्हारा…
शिरोधार्य आदेश तुम्हारा
चाहे जो हो हाल हमारा।
बूँद बूँद को तरसा जीवन
पिया मरुस्थल सारा।
किरन किरन को हीँड़ा जीवन
पिया जिया अँधियारा।
औचक ही मिल गई चाँदनी
क्षण में किया किनारा।
सुरसरि सा पावन तट पाकर
चाहा प्यास बुझाना
देख परख कर रूप रश्मियाँ
चाह रहा था गाना।
कंठ रुद्ध हो गया अचानक
ज्यों निगला हो पारा।
करमजलों का जीना क्या है
साँसों की मजबूरी।
देह धरे का दंड भोगना
शायद बहुत जरूरी।
मेरी अपनी हस्ती क्या है
सपनों का बंजारा।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन भावनात्मक अभिव्यक्ति