(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर?)
आलेख – नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी
नया साल प्रारंभ हो चुका है. आज जन मानस के जीवन में मोबाईल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं ?अब साल, दिन, महीने, तारीखें, समय सब कुछ टच स्क्रीन में कैद हाथो में सुलभ है. वैसे भी अंतर ही क्या होता है, बीतते साल की आखिरी तारीख और नए साल के पहले दिन में, आम लोगों की जिंदगी तो वैसी ही बनी रहती है.
हां दुनियां भर में नए साल के स्वागत में जश्न, रोशनी, आतिशबाजी जरूर होती है. लोग नए संकल्प लेते तो हैं, पर निभा कहां पाते हैं? कारपोरेट जगत में गिफ्ट का आदान प्रदान होता है, डायरी ली दी जाती है, पर सच यह है की अब भला डायरी लिखता भला कौन है ? सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है.देश का संविधान भी सुलभ है, गूगल से फरमाइश तो करें. समझना है की संविधान में केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं. लोकतंत्र के नाम पर आज स्वतंत्रता को स्वच्छंद स्वरूप में बदल दिया गया है.
इधर मंच से स्त्री सम्मान की बातें होती हैं उधर भीड़ में कुत्सित लोलुप दृष्टि मौका मिलते ही चीर हरण से बाज नहीं आती. स्त्री समानता और फैशन के नाम पर स्त्रियां स्वयं फिल्मी संस्कृति अपनाकर संस्कारों का उपहास करने में पीछे नहीं मिलती.
देश का जन गण मन तो वह है, जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं. जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर, गणेश और शिव वंदना गाते हैं. पर धर्म के नाम पर वोट के ध्रुवीकरण की राजनीति ने तिरंगे के नीचे भी जातिगत आंकड़े की भीड़ जमा कर रखी है.
इस समय में जब हम सब मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ नए साल के अवसर पर टच करें हौले से अपने मन, अपने बिखर रहे संबंध, और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में, मन में स्व के साथ समाज वाले भाव भरे सूर्योदय के साथ.
यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं. सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है. इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सब की जिम्मेदारी है.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
न्यूजर्सी , यू एस ए
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈