श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी आँखों में…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 150 ☆
☆ एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी आँखों में…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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बोल कर झूठ आँख चुराता क्यों है
मुझसे खफा है तो छुपाता क्यों है
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वक्त के साथ लोग बदल जाते हैं
ये जानते हैं मगर बताता क्यों है
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रोशनी जिससे हो रही है दिल में
चिराग वफ़ा का यूँ बुझाता क्यों है
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अगर डर है तुझको इस जमाने से
तो दिल हमसे फिर लगाता क्यों है
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हमने देखे हैं अश्क़ तेरी आँखों में
छुपा के गम तू मुस्कराता क्यों है
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पास रहके न पहचान सके जिसको
देख कर दूर से हाथ हिलाता क्यों है
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जो करते हैं नाटक खुद सोने का
उनको “संतोष” तू जगाता क्यों है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈