डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे – मीरा ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 163 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – मीरा ☆
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धुन मुरली की बज रही, दिल में बजते साज।
मैं मीरा घनश्याम की, झूम रही है आज।।
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नाच रही हूं मगन मैं, उर में है बस श्याम।
बजती है बस श्याम धुन, छाए है घन श्याम।।
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मैं मोहन की माधुरी, मुरली की मैं जान।
रोम रोम में बस रहे, मनमोहन में प्रान।।
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जादू है घन श्याम का, चहुं ओर है उमंग।
मीरा रहती श्याममय, मन में उठी तरंग।।
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कैसे तुझसे क्या कहूँ, हूँ तुझमें मैं लीन।
मैं मीरा राधा नहीं, मैं हूँ श्याम विलीन
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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