(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय  व्यंग्य  – व्यंग्य लेखन में बदलते व्यवहार 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 188 ☆  

? व्यंग्य  – व्यंग्य लेखन में बदलते व्यवहार ?

व्यंग्यकार भी आखिरकार समाज का ही हिस्सा होता है, वह रोबोट की तरह नियमो में बंधा आदर्श लेखन मात्र नही कर सकता। वह पूर्वाग्रहों से मुक्त कैसे हो? स्त्री, विद्रूप शरीर, अपनी आदतों के चलते जातियां विशेष जैसे सरदार जी या सिंधी, कंजूसी के चलते महाराष्ट्रीयन आदि पर व्यंग्य किए जाते थे, किंतु समय ने परिवर्तन किए हैं, इन इंगित लोगों में भी और व्यंग्यकार की मानसिकता पर भी, अब इन पर हास्य कम हो रहे हैं, होने भी नहीं चाहिए। अब अष्टाव्रक को देख सभा मखौल उड़ाने की जगह संवेदना के भाव रखने लगी है, जो सर्वथा सही है।

किंतु आतंक के लिए पाकिस्तान या सामान की कम गुणवत्ता के लिए चीन जैसे नए समीकरण नई विसंगतियां उठ खड़ी हुई हैं। इन पर चोट करने से शायद व्यंग्यकार को आनंद मिलता है। तो वह इन जैसे विषयों पर स्वान्तः सुख के साथ साथ पाठको के लिए लिख रहा है।

इसे हम सामाजिक समरसता के विरुद्ध कह जरूर सकते हैं किंतु व्यंग्यकार का काम ही उन मुद्दों को कुरेदना  है जो आम आदमी को चोट करते हैं।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments