श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “गीत – संगीत में बसी दुनिया। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 131 ☆

☆ गीत – संगीत में बसी दुनिया ☆ 

भाषा के महत्व को सभी पहचानते हैं। जब हम किसी ऐसे प्रदेश में हों जो अहिन्दी भाषी हो तो वहाँ अपनी बात चेहरे के भावों से या धुन के द्वारा बतानी होती है। आज भी हम बड़े शान से अंग्रेजी बोलते हुए स्वयं को इंटरनेशनल घोषित करना नहीं भूलते हैं। सोचिए जब कोई अन्य भाषा वाला हिंदी प्रदेशों में आता है तो उसे कैसे संवाद का हिस्सा बनाया जाए। इस सम्बंध में एक वाकया याद आ रहा है, उच्चवर्गीय पार्टी में सभी प्रदेशो से लोग आमंत्रित थे। सब तो भारतीय होने के नाते हिंदी को समझ रहे थे किंतु दक्षिण भारतीय लोग थोड़ा कम घुल मिल पा रहे थे, भाषा की समस्या उनसे जुड़ने में बाधक हो रही थी। इस बात को आर्केस्ट्रा वालों ने बहुत जल्दी भाँप लिया , बस फिर क्या था उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों का हिट संगीत  बजाना शुरू कर दिया। अब तो वो परिवार भी मुस्कुराने लगा, चेहरे पर संतृप्ति का भाव देखते ही उनको बुलाया गया कि वे इस गीत को स्वर दें, देखते ही देखते पूरी पार्टी थिरक उठी अब तो वहाँ ऐसा कोई नहीं बचा जो झूम न रहा हो।

इस सबसे एक बात तो तय है कि वास्तव में गीत- संगीत अपनी लय से हमें जोड़े रखता है। अर्थ समझ में भले न आये किन्तु ताल से ताल मिलाते हुए कदम थिरकने ही लगते हैं। पूरे विश्व को भारतीय फिल्में जोड़ रहीं हैं अपनी सम्प्रेषण क्षमता के कारण। हमें अपने कथ्यों पर भी नजर रखनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया हमें उम्मीद भरी निगाहों से देख रही है।

अन्ततः यही कहा जा सकता है कि सकारात्मकता से सब कुछ सम्भव है बस जुड़े रहिए कुछ सीखने के लिए। मन को पढ़ने की कला जिसको आ गयी उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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