डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – वरना पाप लगेगा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 121 – गीत – वरना पाप लगेगा…  ✍

मेरी बात मामलो मानिनि, वरना पाप लगेगा।

 

दुःख न पहुँचे प्राणिमात्र को

है संकल्प तुम्हारा

संत साध्वियों की गरिमा को

सहज सहज ही धारा

करना व्रत निर्वाह सदा वरना ताप दहेगा ।

 

आखिर मैं भी एक जीव हूँ

यह मेरा प्रयास है

परम शांति की मुझे जरूरत

जन्मों से तलाश है

शांतिप्रदा तुम शांतिदान दो, वरना शाप लगेगा ।

 

चलो छोड़ दो इन बातों को

बातें ये संसारी

इन बातों को केन्द्र मानकर

चलती दुनिया सारी

मेरा कहना भला भला है, आखिर भला लगेगा।

मेरी बात मान लो मानिनि, वरना पाप लगेगा।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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