श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपके भावप्रवण “तन्मय के दोहे…”। )
☆ तन्मय साहित्य #165 ☆
☆ तन्मय के दोहे… ☆
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रखें भरोसा स्वयं पर, है सब कुछ आसान।
पढ़ें-लिखें सीखें-सुनें, बने अलग पहचान।।
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खुद को भी धो-माँज लें, कर लें खुद का जाप।
बाहर भीतर एक हों, मिटे सकल संताप।।
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सीप गहे मोती बने, स्वाती जल की बूँद।
भीतर उतरें मौन हो, मन की ऑंखें मूँद।।
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दिशाहीन संशयजनित, कर्ण श्रवण का रोग।
शंकित जन संतप्त हो, सहते सदा वियोग।।
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आँखों देखी सत्य है, झूठ सुनी जो बात।
कानों के कच्चे सदा, खा जाते हैं मात।।
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कर्म नियति निश्चित करे, यही भाग्य आधार।
सत्संकल्पों पर टिका, मानवीय बाजार।।
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नहीं पता है कब कहाँ, भटकन का हो अंत।
सत्पथ पर चलते रहें, आगे खड़ा बसन्त।।
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कुतर रही है दीमकें, साँसों लिखी किताब।
पाल रखे मन में कई, रंग-बिरंगे ख्वाब।।
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शब्द – शब्द मोती बने, भरे अर्थ मन हर्ष।
पढ़ें-गुनें मिल बैठकर, सुधिजन करें विमर्ष।।
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संयम में सौंदर्य है, संयम सुखद खदान।
जीवन के हर प्रश्न का, संयम एक निदान।।
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अर्क विषैले छींटकर, लगे गँधाने लोग।
नई व्याधियों में फँसे, पालें सौ-सौ रोग।।
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भूले से मन में कभी, आ जाये कुविचार।
क्षमा स्वयं से माँग लें, करें त्रुटि स्वीकार।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈