(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – गणतंत्र के संदेश।)
आलेख – गणतंत्र के संदेश
गणतंत्र दिवस सामूहिकता में व्यक्ति की शक्ति का प्रतीक है। आज अपना देश दुनियां में प्रत्येक क्षेत्र में यश अर्चन कर रहा है । ऐसे समय में देश में हमारा परस्पर सहयोग तथा व्यवहार विश्व देखता है और उसकी व्यापक स्तर पर चर्चा होती है । भारतीय रुपए की ही नहीं, योग, ज्योतिष, ज्ञान, विज्ञान और जीवन मूल्यों की वैश्विक स्थापना हेतु हमारी पीढ़ी की सजग लोकचेतना जरूरी है।
गणतंत्र दिवस पर यही कामना है कि भारतीय जन मानस की मूल राष्ट्र प्रेमी जीवन शैली और आपसी सद्भाव देश की ताकत बने। संकुचित मानसिकता का प्रदर्शन, धर्म के नाम पर राजनैतिक ध्रुवीकरण देश हित में नहीं है। देश संविधान से चलते हैं, संविधान का राष्ट्रीय पर्व ही गणतंत्र दिवस है। भारतीय संविधान दुनिया भर के संविधानो का श्रेष्ठ मिलाकर निर्मित किया गया है। समय के साथ इसमें आवश्यक संशोधन किए गए है।
वर्तमान वैश्विक परिस्तिथियो के अनुरूप भारतीय नागरिकों के सम्मान की सुरक्षा का वादा हमारा संविधान देता है। हमने देखा है कि यूक्रेन की लड़ाई सहित कई अवसरों पर देश के तिरंगे ने भारतीयों की ही नहीं अन्य देशों के नागरिकों को भी दिशा दर्शन करवाया है, यह ताकत ही गणतंत्र की शक्ति है।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
न्यूजर्सी , यू एस ए
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈