श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “चिंतनशीलता। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 133 ☆

☆ चिंतनशीलता 

समय के साथ- साथ चलते हुए लोग अक्सर आगे निकल जाते हैं। जब निरंतरता हो तो कोई भी कार्य आसानी से होता है, ऐसा लगता है मानो चमत्कार हो रहा है। एक साथ इतने सारे रिकॉर्ड बनते जाना, सबको एक टीम में जोड़कर रखना, सबकी उन्नति के रास्ते खोलना, हर चेहरे पर मुस्कुराहट हो, इस सबका ध्यान जिसने रखा वो न सिर्फ स्वयं सफल होता है बल्कि औरों को भी अपनी बराबरी पर ला खड़ा करता है। ऐसा आजकल यूट्यूबरों द्वारा देखने में आ रहा है। सही भी है जो दोगे वही वापस मिलेगा अब तो इस बात को लोगों ने समझना शुरू कर दिया है।

नेटवर्क मार्केटिंग तो इसी सिद्धांत पर चलती है। एक चेन बनाओ फिर चक्र के रूप में सभी लाभान्वित होते रहिए। बस बात यहीं आकर रुकती है, कि परिश्रम की यात्रा का लक्ष्य किस हद तक पूरा हुआ है। जब आप अनुभवों के साथ जीना शुरू कर देते हैं तो राहें आसान हो जातीं हैं। इन सबमें संवाद का होना बहुत जरूरी होता है। नए बिंदुओं की खोज जब रोज होने लगे तो इतिहास रचना तय हो जाता है। ऐसा देखने में आता है कि मंजिल के पास ही भटकन का रास्ता भी होता है जिसनें लापरवाही की वो मुहँ के बल गिर जाता है,और करीबी उसे धक्का देने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।

कुछ भी हो बस अच्छा कार्य करते रहिए। कब कौन से विचार मन को प्रभावित कर जाएँ कहा नहीं जा सकता है। गुटबाजी हर क्षेत्र में अपना प्रभाव रखती है। पक्ष और विपक्ष का वार केवल नेताओं तक सीमित नहीं रह गया है अब तो विचारधारा ने भी अपने आपको एक गुट में खड़ा कर दिया, जब ये लगता है कि मेरा पक्ष मजबूत है तभी हल्की सी चोट लगती है और सब धराशायी हो जाता है। दूसरा गुट  विचारों को इतने टुकड़ों में बाँटता चला जाता है कि कहाँ से जोड़ा जाए समझ ही नहीं आता। इन सबमें मीडिया को एक ज्वलंत मुद्दा मिल जाता है और वो सम्बंधित लोगों को एकत्र कर चर्चा शुरू करवा देते हैं। नतीजा वही ढाक के तीन पात।

खैर इन सबमें इतना जरूर होता है कि हम चिंतनशील प्राणी बनते जाते हैं। कभी  रंग, कभी धर्मग्रंथ, कभी विवादित बयान चलते ही रहेंगे, बस मानवता बची रहे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments