श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना “प्रेम…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 153 ☆
☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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प्रेम- पाठ जिसको पढ़ना आ गया,
जीवन की हर मुश्किल सुलझा गया
मानवता की है पहली सीढ़ी,
प्रेम-ग्रंथ हमको यह सिखला गया
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प्रेम हर सवाल का हल है
वरना समझें सब निष्फल है
प्रेम तोड़ता हर बंधन को
प्रेम हृदय में है तो कल है
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प्रेम इंसानियत की पहचान है
नादां हैं जो प्रेम से अनजान है
प्रेम में ही बसते हैं सब ईश्वर
प्रेम ही दुनिया में सबसे महान है
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प्रेम दबा सकते नहीं नफरत की दीवारों से
प्रेम झुका सकते नहीं ईर्ष्या की तलवारों से
“संतोष” प्रेम झुका है प्रेम के आगे समझो
प्रेम डिगा सकते नहीं,तु म ऊंची ललकारो से
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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