प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “न जाने क्या होगा…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #119 ☆ ग़ज़ल – “न जाने क्या होगा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
बढ़ती महंगाई के चलते ये सोच के जी घबराता है
कल आने वाली दुनिया का भगवान न जाने क्या होगा।
मौसम भी बदल चाहे जब तब करता रहता है मनमानी
वर्षा बिन प्यासी धरती का प्रतिदान न जाने क्या होगा।
पानी ही जग का जीवन है, पानी बिन बड़ी परेशानी
बिजली-पानी बिन भोजन का सामान न जाने क्या होगा।
रूपये का गया घट मान बहुत, व्यवहारों में बाजारों में
है चिन्ताओं का बोझ बढ़ा अरमान न जाने क्या होगा ?
नये रीति रिवाजों का है चलन, व्यवहार बदलते आये दिन
मुश्किल में फंसी हर जान है जब, आसान न जाने क्या होगा।
रहना पड़ता है लोगों को, बेमन से अधूरी छाया में
बढ़ती जाती नित बेचैनी, आदान न जाने क्या होगा।
माहौल गरम, दिल बैठा है, हर नये दिन नई लड़ाई है
बेदर्द जमाना मन मौजी, अनुमान न जाने क्या होगा।
दब कर भी अनेक बोझो में, एक बुझी-बुझी मुस्कान लिये
परवशता में पिसता कल का इंसान न जाने क्या होगा।
दिखती न कहीं भी कोई डगर जहां छाया हो तूफान नहीं
अरमान ’विदग्ध’ उड़े जाते भगवान न जाने क्या होगा।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈