डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आज नहीं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 125 – गीत – आज नहीं…  ✍

आज नहीं, कल बात करेंगे, अभी सफर से आई हो।

कल भी कितनी बात करेंगे

हाँ या ना उत्तर दोगी

कोई मुश्किल प्रश्न किया तो

अलमारी में रख लोगी

ऐसे ही चलती है दुनिया, किसकी भली चलाई हो ।

 

तुम्हें देखने उस नगरी के

कितने लोग जुड़े होंगे

संयम के शहजादों के भी

सहसा पाँव मुड़े होंगे

सच कहना, उस भरी भीड़ क्या, याद शहर की आई हो।

 

वापस आई राजनगर से

रूप नगर की शहजादी

स्वागत का अधिकार नहीं है

कहने भर की आजादी

नहीं, नहीं, कुछ नहीं कहूँगा, नाहक ही घबराई हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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