श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “धूप छाँव टिकती कहाँ…”)

☆  तन्मय साहित्य  #169 ☆

☆ तन्मय के दोहे – धूप छाँव टिकती कहाँ 

बदतमीज  मौसम  हुआ,  हवा हुई है आग।

बीज  विषैले हो गए, फसलों  में  है  दाग।।

धूप  कभी  अच्छी  लगे, कभी लगे संताप।

मन के जो अनुरूप हो, वैसे भरे अलाप।।

धूप छाँव टिकती कहाँ, एक ठिकाने ठौर।

जैसे  टिके न पेट में,  मुँह से खाया  कौर।।

वे  पढ़ पाते  हैं   कहाँ, जो  लिखते  हैं  आप।

सुबह-शाम मन में चले, बस रोटी का जाप।।

सीधे-सादे  श्रमजीवी,  रहते आधे  पेट।

हरदम होती ही रहे, पीठ पेट की भेंट।।

रोज   रोपते  रोटियाँ, रोज  काटते  खेत।

इनको एक समान है, सावन भादौ चैत।।

भादौ में छप्पर चुए, जेठ  सताये घाम।

ठंडी में ठिठुरे यहाँ, कष्ट चले अविराम।।

थाली नित  खाली रहे, पेट  रहे  बीमार।

आँख दिखाए सेठ जी, सिर पर ठेकेदार।।

पेट पीठ में  मित्रता, रोटी  के  मन  बैर।

रोज रात सँग भूख के, करें स्वप्न में सैर।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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