श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…”।)
☆ व्यंग्य # 175 ☆ चिन्तन – “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
आज के व्यंग्य लेखक के सामने सबसे बड़ी चुनौती सन् 2024 सामने है। आज डरे हुए व्यंग्य लेखकों का समय आ गया है। व्यंग्य लेखकों पर नजर रखी जा रही है। तीखे मारक व्यंग्य छापने वाले अखबार पत्रिकाओं के मालिकों पर नजर है। धीरे धीरे प्रिंट मीडिया व्यंग्य से परहेज़ करने लगे हैं। कुछ अखबारों से डेली आने वाले कार्य को बंद किया जा रहा है। बड़े नामी गिरामी व्यंग्यकार चिंतित हैं कि क्या 2024 के बाद व्यंग्य की ठठरी बंध जाएगी ? आज व्यंग्य लिखने वाले लोग डरे हुए क्यों लग रहे हैं ? आज सत्ता के पक्ष में लिखने वालों की भीड़ क्यों पैदा हो रही है ? आज के व्यंग्य लेखक के सामने व्यंग्य का स्वरूप, लक्ष्य और प्रयोजन अदृश्य क्यों हो गए हैं ?
आज हर कवि और कहानीकार अचानक व्यंग्य लिखकर यश कमाना चाह रहा है। भीड़ बढ़ रही है और भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता। मीडिया बिक चुका है कभी कभार कोई अच्छा व्यंग्य लिखा जाता है तो प्रिंट मीडिया में बैठे ठेकेदार उस अच्छे व्यंग्य में कांट छांट कर व्यंग्य की हत्या कर देते हैं।आचरण दूषित होने का फल आज सबसे ज्यादा कुछ व्यंग्यकारों पर दिख रहा है।
सत्ता-विरोधी तेवर दिखाने वाले ज्यादातर व्यंग्यकार व्यवहार में किसी पुरस्कार, पद, सम्मान के लोभ में उसी सत्ता के चरणों में झुके नजर आने लगे हैं। वह सत्ता फिर चाहे व्यक्ति की हो या पार्टी की।ऐसे लोगों ने शर्म बाजार में बेच दी है। आज अधिकांश व्यंग्य लेखक तटस्थता के चालाकी भरे चिंतन से प्रभावित हो रहे हैं।
तटस्थ आदमी को समयानुसार इधर या उधर, कहीं भी सरकने में आसानी होती है। वाट्स एप यूनिवर्सिटी में एडमिन बनकर बैठे तथाकथित व्यंग्यकार अपने अपने ज्ञान देकर व्यंग्य को मिक्सी में भी पीस रहे हैं। व्यंग्य का लेखक ‘इसकी सुने कि उसकी सुने’ के साथ भ्रमित है। कुल मिलाकर आज व्यंग्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद व्यंग्य है। लेखक लिख देता है और पाठक के ऊपर छोड़ देता है कि पाठक तय करें कि लिखा गया व्यंग्य है या नहीं।
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