डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 170 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे… ☆
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रोटी
बच्चे मेरे चार है, दो रोटी है पास।
हिस्से उनके कर दिए, और बची है प्यास।।
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गुलाब
खुशबू हमको घेरती, घेर रहे है ख्वाब।
महक रहा है बस यहाँ, प्यारा लाल गुलाब।।
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मुँडेर
हमको तो आने लगी, काँव काँव आवाज।
बोले काग मुँडेर पर, पाती आती आज।।
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पाती
पाती तो आई नहीं, बीत गई है शाम।
मन में हमने लिख दिया, तेरा विजयी नाम।।
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पलाश
खिलते फूल पलाश के, बढ़ी बाग की शान।
देख उसे खिलने लगी, कलियों की मुस्कान।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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