श्री एस के कपूर “श्री हंस”
(बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत है।।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 56 ☆
☆ मुक्तक ☆ ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[1]
सदियों से ही चल, रही यही रीत है।
हार के बाद ही, मिलती जीत है।।
गर नहीं छोड़ी प्रीत, जोशो जनून से।
सफलता बन जाती, हमारी मीत है।।
[2]
परिश्रमऔर व्यवहार, यही दो मंत्र हैं।
बुद्धिऔर विवेक, जीत के दो तंत्र हैं।।
सहयोग और सरोकार को बनाना मित्र।
साहस और उत्साह,जीत के दो यंत्र हैं।।
[3]
बनना सफल तो ,कर्मशीलता साथ रखो।
सबसे मिला कर हाथों में, तुम हाथ रखो।।
मंजिल खुद चलकर,पास तुम्हें बुलाती है।
बस निरंतर अभ्यास, का सूत्र याद रखो।।
[4]
व्यवहार लोकप्रियता, सिक्के के दो पक्ष हैं।
सफल होते वो सब, जो बोलने में दक्ष हैं।।
जो अनूठा कार्य करते, वो स्थान बना लेते।
जीत का हार पहनते, जो रखते कुछ लक्ष्य हैं।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
मोब – 9897071046, 8218685464