आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट “~ नदी ~”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 128 ☆
☆ ~ सॉनेट ~ नदी ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
नदी नहीं है सिर्फ नदी।
जीवन-मृत्यु किनारे इसके।
सपने पलें सहारे इसके।।
देख नदी में अगिन सदी।।
मरु को मधुवन नदी बनाती।
मिले मेघ से जितना पानी।
सागर को जा देती दानी।।
जीवन को जीना सिखलाती।।
गर्मी-सर्दी, धूप-छाँव में।
पर्वत-जंगल नगर गाँव में।
बहती रुके न एक ठाँव में।।
जननी जन्मे, विहँस पालती।
काम न किंचित कभी टालती।
नव आशा का दीप बालती।।
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२१-२-२०२२, जबलपुर
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